प्यार के चक्कर
माई-बाबू के हऽ प्यार,
भाई-बहिन के आधार।
एक लइका-लइकी खातिर,
कबहूँ ना दिअऽ आपन प्राण।
काहे भइल आजु जान सस्ता?
टुटत बा माई-बाबू से नाता।
आपनहीं में काहे दुश्मनी पसरल?
प्यार में परिवार काहे बिखरल?
प्यार तऽ एक दिन मिल जाई,
बर्दाश्त ना होई माई-बाबू से जुदाई।
प्यार के चक्कर छोड़ऽ तू,
अपन भविस के बारे में सोचऽ तू।
जिनगी बहुते कीमती बा,
कुछ नीक काम कके देखाव तू।
पढ़े-लिखे के उमिरिया में,
प्यार-मोहब्बत से बचा लऽ तू।
विनोद शाह
(कलैया, हाल अमेरिका)
अगस्त २७, २०२५












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